देश आज़ाद है मेरा, और मैं भी
कल तुम भी थे और मैं भी
और फिर दूसरे कल भी रहेंगे
ऐसे ही, आज़ाद
कमरों में बंद, टेलीविजन से चिपके,
बम, जेहाद, आतंकवाद से डरे सहमे,
माओं के कहने से घरों में रुके लाखों
हम, आज़ाद
फेसबुक पर तिरंगे झंडे शेयर करते
और नेताओं पर फब्तियां कसते
और पतंगों की डोर से भी ज्यादा उलझे
हम, आज़ाद
और ऐसा क्यों न हो, हम ऐसे ही हैं –
पढ़ते, याद करते गाँधी जी का जंतर
नहीं याद आते कभी, भगत, सुभाष
और वो आज़ाद
मानता हूँ मैं, एक दिन नशा उतरेगा
इस कथित आज़ादी का, इस आडम्बर
के सैलाब का, वोट की राजनीति का,
होंगे हम, आज़ाद
तब ना डर होगा जंग का, ना रोष होगा
लाल किले के एक और व्यर्थ भाषण का
होगी तो बस एक आवाज़, एक उद्घोष
हम हैं, आज़ाद ।
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कभी कभी मैं खुली आँखों से सपने देखता हूँ, हर तरह के, और ऐसा ही एक सपना अपने मुल्क के लिए है. एक ऐसा देश जो सच में आजाद, उन्नत, विकसित और खुशहाल हो. कई बार लंच के समय अनेकों बार बहस की है, क्यूंकि वर्तमान चाहे जो भी हो पर मैंने अभी अपने देश से उम्मीद नहीं खोयी है. जादू, चमत्कार या कोई प्रक्टिकैलिटी एक दिन हम सबसे ऊपर होंगे, ये मेरा सपना भी है, विश्वास भी. ज्यादा नहीं लिखूंगा, सपने बस तभी कारगर हैं, जब सिद्ध हों।
और मेरे सपने सच होते हैं… अक्सर।
जय हिन्द.
जय भारत.
लिखने में हुई गलतियों के लिए माफ़ी (दोष इस सॉफ्टवेयर का है, मेरा नहीं)